Monday, September 29, 2008

नज्म की उम्र लम्बी है


अदीबों की महफिल उफान पर थी ...महफिल के एक कोने से कुछ बहकती कुछ सम्भलती एक आवाज़ खुशबू से नाही एक नज्म लेके आई।
"आइये आजाइए आ भी जाइए ..यूँ न रह रह के हमे तरपाइए"
अदीबों के चेहरे नज्म ने अपनी और खींच लिए । मुंह खुले रह गये ,दाद की जगह ठिठकी खामोशी थी। नज्म नाक तक मधुशाला में डूबी थी । जैसे किसी शोख परवाने ने बेताबी में तप कर आवाज लगाई हो ।
सही है की मुशायरों में ऐसे दिलफरोज शायर हर रोज नहीं आते जो किसी कोने से ही पुरे मुशायरे को लूट कर थम देlलेकिन ये मंजर अदीबों के लिए इतना भी नया नही था की वे दाद दे ही नही पाये । काफ़ी देर बाद एक उस्ताद शायर ने चिंता में कहा ,"क्या बात है मियाँ ?क्या जिंदगी से दिल भर गया?"। वैसे जवानी और प्रेम के ज्वार का समय हो तो जिन्दगी से दिल भर ही जाता है ,जी चाहता है की जिन्दगी इस मंजर पर ही ठहर जाए । फ़िर सब यूँ हैरतंगेज़ क्यूँ थे ? क्यूंकि ये आवाज़ बारह साल के एक इन्सां की थी । (बालक हम कह नही सकते ,नोजवान वे हुए नही थे ) नाम था मदन ,जिन्हें दुनिया मास्टर मदन पुकारती है ।
अब तक अदीबों ने समझा होगा ये किन्ही शायर के साहबजादे हैं जो पिता की शेरवानी में लिपटे चले आए हैं .अब उन्हें लगा परवाने ही नही सितारे भी जला करते है ।
"क्या जिन्दगी से दिल भर गया?" सवाल के आठ महीने बाद मास्टर मदन का दिल सच में भर गया । सुलगते दिल की बेकरारी इतनी बढी की साँसों से करार टूट गया । कोई पिछले जनम का प्रेम रहा होगा जो उनसे बारह बरस में ऐसी सुलगती नज्म लबालब शोखी में कहलवाता था। ज़रूर आवाज़ उस दिल तक पहुँचगई होगी और मिलने को .................... फिर सितारे पल भर ही को तो आते हैं जमी पर।
मसेर मदन अपनी सात नज्में दुनिया को दे गये हैं । दो मेरे पास भी हैं ,गुलाबों की तरह ।

Friday, September 26, 2008


काबुको से निकल कर
फिर गिरफ्त तेरी ढूंढा किए
ना उड़ पाने की घुटन में जिया किए
तन्हा उड़ान की उचाईयो से डरा किए
...नि.