Wednesday, October 1, 2008

घर:- हमारे घरों के बारे में


जयपुर वालों के घर का आँगन ,जयपुर के भीतर नही , जयपुर से जयपुर तक, जयपुर के साथ साथ होता है।
मैं खूब घूमी ..........जन्हा भी गई , मेरे नाम के बाद... और कभी पहले भी मिलने वालो को पता लगा की मैं जयपुर की हूँ। डेल्ही क्यूंकि लम्बे समय रही तो अक्सर साथ रहने वाले खूब मजाक बनाते "निधि सक्सेना नही निधि जयपुर ",क्यूंकि बातो में मुह से बात निकल ही जाती की मैं जयपुर की हूँ। बहुत सारे दोस्त गुस्सा भी होते हैं और कहते हैं की मैं शेत्रवादी हूँ ,राजधानी में शेत्रवाद फैला रही हूँ। मेरा दिल पूरी दुनिया में घूमता है ,लेकिन ,कहते हैं ;-
वह पंछी बुरा पंछी है जो अपने घोसले से उड़ कर ऊँचे आकाश में न जाए।
और यह भी कहते हैं की ;-
वह पंछी बुरा है जो ऊँचे आकाश की उडानो के बाद,आकाश के रंग लिए वापस अपने घोसले में न आए ।
हम में हमारे शहर सपने ,उमंगें, जोश और जवानी भर के दुनिया में भेजते हैं । मई अपने घर को केवल विरह के गीत और बूढी हड्डियां कैसे लौटा दू .......... उसे मैं साथ लिए घूमती हूँ ।मेरे साथ ,मुझमे आप मेरे शहर से भी मिलते हैं । जैसे मई आपके ।
मेरे शहर और मेरी दुनिया के बिच दीवार नही है रास्ता है

4 comments:

Cinephile said...

nice to see a blog in hindi.....good internet is also helping hindi.......good work

himanshu said...

अरे ये तो तुम हो...!
ग्रेट!

नवनीत नीरव said...
This comment has been removed by the author.
नवनीत नीरव said...

Jaipur to main kabhi gaya nahi......par bachpan se mujh par is shahar se prakashit hone wali hindi patrika BALHANS ka prabhav raha hai.Aap us shahar ki hai jaan kar kaphi achchha laga....aapki rachnayein kaphi achhhi hai.
Dhanayawad