Sunday, November 2, 2008


मान्विये संबंधो में
कोई बात क्यूँ हो जाती है
तुमने छुआ है कभी
चिडिया के पंखो को ..
ये मान्विये संबंधो से
क्यूँ लगते हैं ?
मिलन का उल्लास
और बिछड़ने पर दुःख
बिछड़ने पर सदा
दुःख ही क्यों होता है ?
सुनो
कनेर के उस फूल को देख रहे हो ॥
पीला सा फूल
टप से जमीन पर गिरा
लेकिन कोई रुदन नही
हवा /वैसे ही बह रही है
फिर मान्विये संबंधो में ही कोई बात क्यूँ हो जाती है ??
मिलन पर उल्लास
बिछड़ने पर दुःख
बिछड़ने पर सदा दुःख ही क्यों होता है ??

(जाने सवाल है या कविता )

6 comments:

Ashish Maharishi said...

sundar

सुनील मंथन शर्मा said...

blog men lagi taswir bahut hi mast hai. blog men penting bhi post karen.

पुरुषोत्तम कुमार said...

सवालों भरी यह कविता काफी अच्छी है।

नीरज गोस्वामी said...

कविता में बहुत से सवाल भरे हैं लेकिन जवाब कौन देगा...बहुत सुंदर रचना...बधाई.
नीरज

सुशील छौक्कर said...

इस सवाल का जवाब तो हमारे पास भी नहीं। वैसे शब्दों की माला अच्छी लग रही है।

पुष्यमित्र said...

बिछड़ने पर सदा
दुःख ही क्यों होता है ?
सुनो
कनेर के उस फूल को देख रहे हो ॥
पीला सा फूल
टप से जमीन पर गिरा
लेकिन कोई रुदन नही
हवा /वैसे ही बह रही है

aapki kavita wissaw shibmborshka kee yaad dilati hai.