
रहने दो रंग
मैं तो जानती हूँ
दरअसल सब कुछ
श्वेत- श्याम ही है
दरअसल सब कुछ श्वेत - श्याम ही रहना है
इन आकृतियों को तुम
नीला रंगों या भूरा
दरअसल हम सब
सफ़ेद कागज़ पर
काले पेन के स्केत्च ही हैं
जाओ रंग
काली लकीरों के भीतर हम सब को
कोरा ही रहना है
रहने दो रंग
मैं तो जानती हूँ
रंग भरना
रंगहीन होना
मैं तो जानती हूँ
दरअसल सब कुछ
श्वेत- श्याम ही है
दरअसल सब कुछ श्वेत - श्याम ही रहना है
इन आकृतियों को तुम
नीला रंगों या भूरा
दरअसल हम सब
सफ़ेद कागज़ पर
काले पेन के स्केत्च ही हैं
जाओ रंग
काली लकीरों के भीतर हम सब को
कोरा ही रहना है
रहने दो रंग
मैं तो जानती हूँ
रंग भरना
रंगहीन होना
और सोचो तो
ये काला रंग भी तो
मिथ्या ही है
तो क्या आखिरी पेंटिंग है
खाली कैनवास
शीर्षक "हम"
9 comments:
मैं जानता हूं रंग
कि
मैं कितना भी चाहूं
तुमसे बच नहीं सकता!
श्वेत-श्याम बने रहने की
ख्वाहिश
जिंदगी के रंगों से
दूर रहने की ख्वाहिश जो ठहरी,
और जिंदगी रंगहीन
हो सकती है भला!!
इस कविता को पढ़ते हुए जो दिमाग में आया, टाइप कर दिया, उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगे...
रंग के साथ सुंदर संवाद।
अच्छा िलखा है आपने । भाव बहुत संुदर है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
वाह! बहुत सुन्दर.
Aapke profile ne kafi prabhavit kiya. Acha likhti hain aap. swagat mere blog par bhi.
(Pls remove unnecessary word verification).
Bahut achcha likha hai aapne. Badhai.
श्वेत-श्याम से बना यह शब्दों का कैनवास बहुत सुन्दर लग रहा है।
श्वेत-श्याम रंगो से बना यह शब्दों का कैनवास बहुत सुन्दर लग रहा है।
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